रामायण के प्रसंगों में कई ऐसे पात्र होते हैं जिनका ज़िक्र अक्सर मुख्यधारा में नहीं होता, लेकिन उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। ऐसा ही एक किरदार है – त्रिजटा, जो राक्षसों के कुल में जन्मी, मगर अपने गुणों, बुद्धिमत्ता और आचरण से देवियों के समान मानी जाती हैं।
वह न केवल विभीषण की बेटी थीं, बल्कि रावण जैसे शक्तिशाली राजा को भी उनकी दिव्य दृष्टि और सच्चाई के प्रति निष्ठा के कारण डर लगता था।
🧝♀️ त्रिजटा कौन थीं?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिजटा राक्षस कुल में जन्मी एक अत्यंत बुद्धिमान और गुणी कन्या थीं। वह लंका के राजा रावण की भतीजी और विभीषण व उनकी पत्नी शर्मा की पुत्री थीं। यद्यपि वह राक्षसी थी, लेकिन उसकी सोच, दृष्टिकोण और आचरण देवी तुल्य थे। वह सदैव धर्म के पक्ष में खड़ी रहीं।
🌺 त्रिजटा और माता सीता का संबंध
जब रावण माता सीता का हरण कर उन्हें अशोक वाटिका में लाया, तब त्रिजटा भी उन्हीं राक्षसियों में से एक थीं जिन्हें सीता की निगरानी में रखा गया था। अन्य राक्षसियाँ सीता को रावण से विवाह करने के लिए बाध्य करती थीं, पर त्रिजटा ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि उन सभी को डांटा और सीता से क्षमा मांगने को कहा।
🔮 त्रिजटा का दिव्य स्वप्न
त्रिजटा ने एक स्वप्न देखा जिसमें उन्होंने लंका को जलते हुए, हनुमान को लंका में आग लगाते, और राम-लक्ष्मण को सीता माता को मुक्त करते हुए देखा। इस स्वप्न को उन्होंने न केवल राक्षसियों के सामने बताया, बल्कि माता सीता को भी आश्वस्त किया कि उनका उद्धार निकट है।
इस दिव्य दृष्टि और भविष्यवाणी के कारण, त्रिजटा को सभी राक्षसियों में विशेष सम्मान प्राप्त था।
⚔️ क्यों डरता था रावण त्रिजटा से?
रावण अत्यंत शक्तिशाली और निडर राजा था, लेकिन त्रिजटा की भविष्यवाणी शक्ति और धर्म के प्रति उसकी निष्ठा से वह भयभीत रहता था।
- त्रिजटा को ब्रह्मज्ञान और दिव्य दृष्टि प्राप्त थी।
- वह भगवान विष्णु की उपासक थीं।
- उसकी हर बात सत्य सिद्ध होती थी।
रावण जानता था कि त्रिजटा राम के पक्ष में है और उसकी भविष्यवाणियाँ सत्य होती हैं, इसलिए वह उसका सामना करने से कतराता था।
🛕 बनारस में त्रिजटा का मंदिर
माता सीता रावण वध के पश्चात जब अयोध्या लौट रहीं थीं, तब उन्होंने त्रिजटा को आशीर्वाद दिया कि वह भी एक दिन देवी रूप में पूजी जाएंगी। उन्होंने त्रिजटा को काशी (बनारस) में निवास करने और लोगों की सेवा करने को कहा।
आज भी बनारस में त्रिजटा देवी का मंदिर स्थित है, जहाँ कार्तिक पूर्णिमा के दूसरे दिन उनकी विशेष पूजा होती है।
🙏 त्रिजटा पूजा का महत्व
हर साल कार्तिक पूर्णिमा के पश्चात आने वाले दिन त्रिजटा की पूजा होती है।
- भक्त मूली, हरी सब्जियाँ, और अन्य पारंपरिक प्रसाद चढ़ाकर पूजा करते हैं।
- मान्यता है कि त्रिजटा की पूजा से रक्षा, ज्ञान और सच्चाई की प्रेरणा प्राप्त होती है।
🧾 निष्कर्ष
त्रिजटा केवल एक सहायक पात्र नहीं थीं, बल्कि एक ऐसी राक्षसी थीं जिन्होंने धर्म, न्याय और सच्चाई का साथ देकर इतिहास में अपनी अलग जगह बनाई। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि जन्म से कोई महान नहीं होता, बल्कि कर्मों से महानता मिलती है।
उनकी कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणास्रोत है जो अंधकार में भी प्रकाश ढूंढ़ता है और धर्म के मार्ग पर अडिग रहता है।